Domestic violence

Domestic violence (घरेलू हिंसा) वैसे तो हमारा समाज और देश प्रगति के रास्ते पर आगे बढ़ रहा है और आज हम मंगल ग्रह तक पहुँच चुके है, लेकिन फिर भी हमारे देश में संकुचित मानसिकता के ऐसे भी लोग है जो आज भी महिलाओं को पुरुषों से कम आंकते हैं और उनका मानना है कि महिलाएं केवल घरेलू काम काज और परिवार को सँभालने के लिए ही होती है। यह एक ऐसी सोच है जो महिलाओं को हमारे संविधान द्वारा प्रदान किये गए समानता के अधिकार के विपरीत है और यही सोच महिलाओं के प्रति (Domestic violence) घरेलू हिंसा का मुख्य कारण है। महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा के मामले ना सिर्फ ग्रामीण इलाकों में पाए जाते है बल्कि इसके विपरीत आजकल शहरो में इन मामलो की संख्या में प्रतिदिन बढ़ोत्तरी होती जा रही है। एक अधिवक्ता होने के कारण मैंने स्वयं इस बात को महसूस भी किया है।
महिलाओं को घरेलू हिंसा से बचाने और उनका संरक्षण करने के लिए भारत की संसद द्वारा वर्ष 2005 में घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 पारित किया गया है। इस अधिनियम के अंतर्गत महिलाओं के विरुद्ध हुए अथवा हो रहे घरेलू हिंसा के लिए दोषी व्यक्ति अथवा व्यक्तियों पर कार्यवाही करने, महिलाओं के लिए संरक्षा आदेश, निवास आदेश, मौद्रिक अनुतोष, अभिरक्षा आदेश, प्रतिकर आदेश, और दोषी के विरुद्ध दंडात्मक आदेश पारित किए जाने का प्रावधान किया गया है। पीड़ित महिलाएं इस अधिनयम के अंतर्गत सम्बंधित न्यायालय में आवेदन कर सकती है। दोषियों के विरुद्ध निश्चित रूप से कार्यवाही होगी।
Kavishvar kumar Advocate
Bilaspur (c.g.)


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