प्रत्येक व्यक्ति का यह कर्तव्य होता है कि वह उस पर आश्रित परिवार के सदस्य (माता-पिता, पत्नी और बच्चे) का पालन पोषण और भरण पोषण करे। पारिवारिक दायित्वों और कर्तव्यों से भरण पोषण के अधिकार की उत्तपत्ति होती है। परिवार के मुखिया या प्रमुख जो परिवार के लिये आय का अर्जन करता है, उसका यह ना केवल पारिवारिक दायित्व होता है कि वह परिवार के सदस्यों जैसे माता-पिता, पत्नी, और बच्चे का भरण पोषण करे बल्कि यह विधिक कर्तव्य भी है। किन्ही भी सामान्य परिस्थितियों में यदि परिवार के मुखिया के द्वारा अपने उक्त पारिवारिक एवं विधिक कर्तव्य का निर्वहन नही किया जाता है तो परिवार के वे सदस्य जो आश्रित है जैसे माता-पिता, पत्नी, और बच्चे वह अपने भरण पोषण के विधिक अधिकार हेतु न्यायालय में धारा 125 द.प्र.सं. के अंतर्गत न्यायालय में आवेदन कर सकते है। धारा 125 द.प्र.सं. के अंतर्गत प्रस्तुत आवेदन पत्र जिले के परिवार न्यायालय अथवा सक्षम न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है। परिवार न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश अथवा सक्षम न्यायाधीश आवेदन पत्र की सुनवाई करते हुए भरण पोषण की एक निश्चित राशि आवेदक (माता-पिता, पत्नी या बच्चे) को प्रदान किये जाने के लिए आदेशित कर सकते है। भरण पोषण की राशि निश्चित किये जाने का आधार, परिवार के मुखिया की कुल मासिक आय तथा उनके समाज मे रहन-सहन अर्थात जीवन शैली के मानकों के आधार पर तय किया जाता है। धारा 125 के अंतर्गत भरण पोषण प्राप्त किये जाने हेतु न्यायालय का यह समाधान करना आवश्यक है कि जिस व्यक्ति से भरण पोषण की मांग की गई है उसके पास आय का पर्याप्त साधन होते हुए भी अपने दायित्वों को पूरा नही कर रहा। लेकिन यदि आवेदिका की स्थिति में पत्नी हो और वह एक व्यभिचारिणी का जीवन व्यतीत कर रही हो या बिना किसी कारण के पति से अलग रह रही हो अथवा पति-पत्नी रजामंदी से अलग रह रहे हो तो ऐसी स्थिति में पत्नी का आवेदन पत्र निरस्त भी किया जा सकता है।
Very very helpful information sir. Thanx.
ReplyDeletethanx sir.
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